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शिक्षकों की कलम से...
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' स्त्री '
(महिला दिवस विशेष)
कभी लाचारी तो कभी गरीबी की बलि चढ़ती लड़कियाँ,
कभी संकीर्णता, कभी हिंसा तो कभी दहेज की आग में तड़पती लड़कियाँ,
यूँ तो कहने को " भ्रूण हत्या पाप है ", सबसे बड़ा अभिशाप है,
नवरात्र में जो देवी है, आम दिनों में साधारण महिला !!
क्यूँ ये समाज पुरुष प्रधान है?
क्यूँ हर कदम पर दुःशासन विराजमान है?
क्यूँ नहीं किसी कृष्ण की सत्ता है?
क्या एक स्त्री की वेदना, पुरूष कभी नहीं समझ सकता है?
सिखाया जाता जीने का ऐसा सलीका है,
मत हँसो खुलकर यही जीने का तरीका है,
नहीं कहूँगी हर पुरूष दुर्योधन और कसाई है,
कुछ जंगे पुरूषों ने भी महिलाओं के साथ मिलकर जितवाई हैं,
कुछ महिलाऐं स्वयं उठें, पुरुष स्वयं का मानसिक उत्थान करें,
किसी और को न सही स्वयं की पुत्री, कांता और माँ का सम्मान करें,
होगा निर्मित राष्ट्र सशक्त नारी सशक्त पुरूष सशक्त।
लेखिका-
अपर्णा कौशिक
अध्यापक लेवल-2 (गणित/ विज्ञान)
रा• उ• मा• वि• दुवाटी, धौलपुर
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
तू औरत है तू मान बड़ा
नतमस्तक ना हो तू आन बड़ा।
अंगारों की आग भी तू
मां की ममतामई छांव भी तू।
पैरों में लगी जंजीरों की फिक्र नहीं
तेरा होगा जिक्र जहां कहीं।
बेटी बन परिवार की करें सुश्रुषा
मां बन परिवार की करे रक्षा।
नारीवाद का कोई शोर नहीं
जहां तेरा सम्मान फिर कोई मंदिर और नहीं।
बेटी बन माता पिता का मान बड़ा
पत्नी बन सोलह श्रृंगार मिला
बहू बन माता-पिता का फिर साथ मिला
मां बन परिवार का ख्याल बड़ा
आत्मनिर्भर बन पहचान मिला, सम्मान मिला।
सम्मान प्रशंसा प्रेम से सजे यह साज
8 मार्च हे आज
"अधिकार समानता सशक्तिकरण" का यह आगाज़
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाओं के साथ।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
मातृ पितृ पूजन दिवस
ख्याल देखभाल सम्भाल का भाव रहा
माता पिता का यह आशीर्वाद सदा
हम है उनकी लाइफलाइन
विशिंग यू पेरेंट्स हैप्पी वेलेंटाइन
पिता ने जिंदगी की धूप में बनके छाया
मां ने ममता को बरसाया
आज तुम्हे याद कर मेरा दिल भर आया
कैसे कर लेते हो पेरेंट्स मैनेज तुम सब काम
तुम हो पिलर, दी मजबूती
जोड़के रखते सबको साथ
नमस्कार आपको
कोटि कोटि प्रणाम
निस्वार्थ यह प्रेम
गर्व है इस पर
इस पर है नाज़
तुम जियो हजारों साल
तुम हो ही इतने खास
चाहे कितने बड़े हो गए हम आज
पिता का सर पे वो हाथ
मां लोरी सुना दो फिर से आज
सुकून के पल मुझे लौटा दो कोई आज
इस बहुमूल्य रिश्ते को
बनाएंगे हम खास
स्नेह, विश्वास, देखभाल
सम्मान, ख्याल से पलो को भर देंगे
करे वादा यह आज
यह रिश्ता है ही कुछ खास
मात्र पितृ पूजन दिवस है आज
मंगलकामनाओं से भर जाए आपका जीवन
शुभकामाओ से हो आपका प्रसन्न मन।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
शिवरात्रि
जय भोलेनाथ जय महाकाल
तुम्हारी शरण में शीश झुकाए
सिर पर तुम्हारा हाथ, करो उद्धार ।
ऐसा करे ध्यान शिव का हो मान
निष्पक्ष व्यवहार,
सादा जीवन और उच्च विचार
सब्र रखो, होंगे सब काम
यह है शिव ज्ञान, करो प्रणाम।
अर्धनारीश्वर तेरा ही नाम
मिलकर करे अब काम
परिवार का हो सम्मान
सुख संतोष का हो वास
कितना सुखद है यह समा
शिव और पार्वती का हुआ है जो विवाह
रात्रि होगा जागरण,
शिव जी ने किया है गृहस्थ जीवन में आगमन।
करो पूजा -अर्चना और आरती
आज जो हैं महाशिवरात्री
मनोकामना पूरी कर दो है शिव
तुम्हारे दर पे खड़ी मैं, करु शिव आरती।
शिव शक्ति है
शिव भक्ति है
शिव सत्य हैं
विष और अमृत स्वीकारा
शिव ने सहर्ष हैं।
डमरू वाले बाबा के डमरू की गुंजायमान
हर हर महादेव का हो जय जय गान
खुशियां बरसे इस साल
जय महाकाल जय महाकाल।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
शब्द महिमा
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कवित्त:-
एक शब्द नगर और देशनि को बांट देत,
एक शब्द पाट देत गहरी सी खाई है।
एक शब्द हिलमिल के रहने को संदेश देत,
एक शब्द घर में दे दीवार उठाई है।
एक शब्द दुख में संजीवनी को काम करे,
एक शब्द श्रवण सुन मौत गल लगाई है।
कहत है 'कमल' गुरु ज्ञानी ध्यानी संत कहें,
शब्द के ही बल लेंइ त्रिलोक विजय पाई है।
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स्वरचित एवं मौलिक
कमल सिंह गुर्जर
पंचायत शिक्षक
G.S.S.S.Duwati
ग़ज़ल
*****
शिक्षकों तुम्हें अब सुधरना पड़ेगा।
पुराना रवैया बदलना पड़ेगा।।
रहे चलते अब तक पुराने तरीकों से,
नये अब सलीकों में ढलना पड़ेगा।।१।।
नवाचार,डिजिटल या बुनियादी शिक्षा,
रोजगार उन्मुख गढ़ना पड़ेगा।।२।।
तुम्हारे ही कंधों पर कल का है भारत,
गारत से तुमको निकलना पड़ेगा।।३।।
बरबाद भारत की होती नव पीढ़ी,
उसे सद् मार्ग पर करना पड़ेगा।।४।।
फ़र्ज़ों को बोझा समझना कभी ना,
'कमल' नम्र बनकर भी अड़ना पड़ेगा।।५।।
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स्वरचित एवं मौलिक
कमल सिंह गुर्जर
पंचायत शिक्षक
रा०उ०मा०वि०-दुवाटी(धौलपुर)
राही बढ़ता जा....
**************
(चंपक माला छंद) वर्ण-२०
भगण मगण सगण गुरु
211 222 112 2
राह नहीं आसान यहां पे,
मंजिल कांटेदार मिलेगी।
ना डरना राही विपदा से,
साहस को ना हार मिलेगी।।
जो घबड़ाता है खतरों से,
मंजिल ना वो पा सकता है।
दे कर के हुंकार लड़ा वो,
शेर नहीं रोके रुकता है।।
ओ श्रम वीरों शीस बढ़ाओ,
मांग रही है भू कुरबानी।
जो तुम को है प्यार धरा से,
तो तुम आ जाओ बलिदानी।।
तेज करो चालें कदमों की,
राह तके माला जयश्री की।
मान बढ़ेगा शान बढ़ेगी,
और बढ़ेगी इज्जत मां की।।
कर्म करो सारा जग जाने,
ना मिलता ऐसा फिर मौका।
मानव सेवा से दुनिया में,
पार लगेगी जीवन नौका।।
*************************
स्वरचित एवं मौलिक
कमल सिंह गुर्जर
पंचायत शिक्षक
रा०उ०मा०वि० दुवाटी(धौलपुर)
एक गीत गणतंत्र दिवस के नाम
************************
*आओ पर्व मनाएं हम सब भारत के गणतंत्र का।*
*अंगीकार किया था इस दिन संविधान से मंत्र का।।*
हटीं बंदिशें अंग्रेजों की
स्वदेशी कानून बने।
सब जन रहें सुरक्षित निर्भय
लिखे गए मजबून घने।।
सत्ता पूर्ण समर्पित कर दी,राज हुआ जनतंत्र का।।१।।
आओ पर्व मनाएं हम सब........
कुछ अधिकार मिले थे हमको,
जीवन सुगम बनाने को।
मौलिक कुछ कर्तव्य सिखाए,
खुद ढ़़लने अपनाने को।।
जीयो और जीने दो सबको, मूलमंत्र था ग्रंथ का।।२।।
आओ पर्व मनाएं हम सब......
काम सुचारू चले व्यवस्थित,
जुड़े एक से एक कड़ी।
सुलभ और निष्पक्ष न्याय को,
न्यायपालिका करी खड़ी।।
उत्तरदायी जनता के प्रति,हो सत्ता जनतंत्रिका।।३।।
आओ पर्व मनाएं हम सब.......
राष्ट्र-राज्य संभाग जिला औ,
पंचायत में बांट दिए।
बुनियादी संसाधन सबके,
भेद-भाव पुल पाट दिए।।
निर्भय होकर करें सफर हम,मिटे खौफ गनतंत्र का।।४।।
आओ पर्व मनाएं हम सब......
कद पद बांटे और शक्तियां,
रखीं खास संचालन को।
नियम विरुद्ध चले जो उनको,
दंडित और सुधारन को।।
दोहन ना हो मानव हित का,नहीं हनन हो जंतु का।।५।।
आओ पर्व मनाएं हम सब.....
कूटनीति और नीति विदेशी,
राष्ट्र हित जहां हावी हो।
निर्गुट रह कर सभी गुटों से,
सामंजस्य प्रभावी हो।।
सजग और चौकन्ने रहकर,दमन करें षडयंत्र का।।६।।
आओ पर्व मनाएं हम सब.......
राष्ट्र धर्म से बढ़कर अपना
कोई मजहब पंथ नहीं।
संविधान से बड़ा पूजनीय
अपना कोई ग्रंथ नहीं।।
हर तबका खुशहाल रहे,ना दंश रहे परतंत्र का।।७।।
आओ पर्व मनाएं हम सब.........
हम प्रसून भारत उपवन के
मिलजुल कर महकाएंगे।
क्षति पहुंचाएगा जो इसको
उसको सबक सिखाएंगे।।
"कमल" शांति की अनुपम धारा,बहे नीर सुख तंत्रिका।।८।।
आओ पर्व मनाएं हम......
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स्वरचित एवं मौलिक
कमल सिंह गुर्जर
पंचायत शिक्षक
रा०उ०मा०वि०-दुवाटी(धौलपुर)
*गणतंत्र दिवस*
स्वतंत्र हुआ सम्पन्न हुआ
देश हमारा गणतंत्र हुआ
आन है मान है शान है
हमारा लिखित भारतीय संविधान हैं
यह राष्ट्रीय उत्सव लाया नई उमंगे है
देश में जगह जगह ध्वजवंदन है
तिरंगा हमारी शान है
सामूहिक रूप से गाया हमने राष्ट्र गान है
यह एक सांस्कृतिक प्रोग्राम है
विविधता में एकता हमारी पहचान है
इस मिट्टी की खुशबू मे मेहनत और बलिदान है
हमारे स्वयं के कानून और अधिकार है
स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास
उन्नत हो हमारा देश यह हमारा हमेशा प्रयास
उल्लास, उमंग, उत्साह और मनोकामनाएं
आप सबको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
" हाय परीक्षा आई"
खेलकूद में दिन बीता सोने में रात गंवाई!
हाय परीक्षा आई अब क्या होगा रे भाई !!
आ जाती है हर वर्ष ताज तक इसे नहीं आती!
जब से आती है;आंखों से नींद चली जाती है!!
कोई ऐसा वीर नहीं; जो टॉक सके इसको!
स्कूल कॉलेज में आने से रोक सके इसको!!
सब मरते हैं इसकी अब तक मौत नहीं आई!
हाय परीक्षा आई अब क्या होगा रे भाई!!
डरते नहीं कभी हम बंदूको तलवारों से!
डरते नहीं कभी हम सोलो से अंगारों से!!
क्या कारण है किंतु समझ में बात नहीं आई!
नाम परीक्षा का सुनते ही नानी याद आई!!
हार मानकर भागे इससे कितने बलदाई !
हाय परीक्षा आई; अब क्या होगा रे भाई!!
बिन बादल बरसात रात -भर बिजली से कड़के!
जो जो आए पास परीक्षा क्यों क्यों दिल धड़के!!
बाथरूम में अब न फिल्म के गाने हम गाते ! जो कुछ पढ़ा रात को; उसको ही है दोहराते!!
नीतेश कुमार गुप्ता
अध्यापक लेवल 1
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय दूबाटी(DUWATI )जिला धौलपुर राजस्थान
Mob.no.7568081905
*घर आंगन*
बचपन की छत लौटा दो मुझे
छोटा सा पिंजरा दिलवा दो मुझे
बचपन में जो मिट्टी का घर बनाया था
अब उसमें रहना है मुझे।
परिवार को सुरक्षित कर
सुकून के पल जी लू ज़रा
यह हमारा आशियां है मैं भी यह कहूं लू अब यहां
घुमंतू सा जीवन जी कर
मैं थक सी गई
अब घर के आंगन की धूप में सो लू ज़रा।
मां की ममता,वह पिता का लाड
भाई बहनों संग जिया
खट्टा मीठा बचपन
कहीं खो सा गया
तुम सब आकर उन पलों से मुझे मिला दो ज़रा
इस घर को घर बना दो ज़रा।
परिवर्तन ही जीवन का नियम है
मुझे यह पता है सदा
वह पल जो मुझे शक्ति दे
साथ मेरे रहे हमेशा।
गृह प्रवेश की घड़ी आ ही गई
चाहे कुछ समय हो लगा
सब्र का फल मीठा हुआ
मैं झूमू , कभी यहां कभी वहां।
बचपन में माता-पिता के चांद रहे हम
चंदवानी भवन पहचान बना
अब मुझे मेरा राम मिला
नाम को फिर नया पहचान मिला
पेरेंट्स की दी शिक्षा और आशीर्वाद से
पहचान मिला, सम्मान मिला।
धन्यवाद मैं सबको दूं यहां
जिनके साथ ने मुझको काबिल बना
दिया पाठ धैर्य और कर्मठता का
और मैंने सफलता का स्वाद चखा
मनोकामनाएं पूरी हो आप सबकी
आशीर्वाद बना रहे,आपका सदा।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
Merry Christmas
शीतल हवाओं से मौसम का बदला मिजाज
क्रिसमस का दिन है
लाया है खुशियां अपार
होगा आज उपहारों का आदान-प्रदान
हमने बांधी आशाओं की पुड़िया
सेंटा कर देना हमारी पेंडिंग लिस्ट को पूरा
झोली में होगी खुशियां अपार
आज मनाएंगे क्रिसमस का यह त्यौहार
एक्सचेंज होंगी स्वीट्स
मीठा मुंह करेंगे हम आज
मेरी क्रिसमस मेरी क्रिसमस
यह विशेस हमारी आज
हमारा यह छोटा परिवार
सुख-दुख बांटे हम यहां सब साथ
कर्मठता की है भूमि, यह हमारी खास
मेहनत के बीज हमने बोए हैं
होगी खुशियों की बरसात।
जो सपने देखे हे हमने उसके लिए करेंगे लगके मेहनत
क्रिसमस कमिटमेंट यह हमारा और हम है सहमत
सबके सपने होंगे पूरे, होंगे सेलिब्रेशंस
यह हमारे दिल का पॉजिटिव वाइब्रेशंस
Merry Christmas Merry Christmas
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
माँ
माँ तू ही मूरत है,"ममता" की,
माँ तू ही सूरत है," करुणा" की,
माँ तू ही संभाले सबको,
माँ तू ही सँवारे सबकुछ,
घर एक मंदिर है, कहते हैं सभी,
तू ही है माँ इस मंदिर की देवी,
माँ तू ही सहारा,
माँ तूने सँवारा,
"माँ" शब्द है सचमुच ही कितना प्यारा ,
हो आधि या व्याधि मन माँ ही पुकारे,
माँ का दर्द न ही कोई जाने,
ख़ुद को छोड़ तू सबको सँवारे,
काया न ख़ुद की ढंग से निहारे,
बस तन-मन-धन से तू करती है सेवा,
जाने हैं सब नहीं तुझसा कोई दूजा,
शब्दहीन है वर्णित करने को माँ,
जाने है जग तू ही "करुणा और दया"।
अपर्णा कौशिक
अध्यापिका लेवल-2(गणित- विज्ञान)
रा• उ• मा• वि• दुवाटी , धौलपुर
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मां
कैसे लिखूं ..
तुम शब्दों में कहां समाती हो
कभी गुरु कभी देवी
कभी आया बन जाती हो
भिन्न भिन्न रूप तेरे
तुम शब्दों में कहां समाती हो
एक बूंद समान शब्द मेरे
समुद्र की गहराई समान व्यक्तिव
कैसे मैं बयां करु
भावनाएं उमड़ रही
शब्दों के मोती कैसे पिरो सकू
जब हो अकेले, न हों कोई साथ
मां हमेशा मेरे पास
तुम ही जन्मदाता
पालनहार तुम ही
मां की जगह कैसे ले कोई
दुख हो
सुख हो
स्मरण में तुम ही
प्रार्थना में
पिता के रूप में तुम ही
साथ में शक्ति दो तुम ही
अकेले हो तो प्रेरणा बनो तुम ही
तुम्हारे होने से परिपूर्णता का अहसास हैं
तुम्हारे होने से हम कुछ खास हैं।
चंदवानी की चांद
सुंदरता में चार चांद
ब्यूटी विद ब्रेन, बच्चे सारे तुम्हारे खास
सौभाग्य हमारा, साथ है तुम्हारा
ईश्वर की कृपा ऐसे ही बरसती रहे
ममता की छाया मे हम सुरक्षित रहे
हम भेजे मंगलकामनाएं
जन्मदिन की शुभकामनाएं।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
'धरणी की पुकार'
ऐ मानव! तू मान जा रे,
वसुधा रे दुःख को जान जा रे ।
है तू अब तक बेखबर,
आ रहा ना तुझे नजर,
बातें हो रही बेअसर ।
ऐ मानव!................।।
माँ तेरी कराह रही है,
जिससे उम्मीद लगा रखी है,
काट रहा तू नीड़ों को,
उखाड़ रहा पर्वतों को,
संभाल ले आज खुद को,
वरना पछताएगा कल को ।
ऐ मानव!.....................।।
दम उसका घुट रहा है,
फिर भी ना तू समझ रहा है,
आँखें होंगी जब बेनज़र,
आएगा तब तुझे नज़र,
काश ! मैं पहले मान जाता,
धरणी रे दुःख को जान पाता ।
रचनाकार
अपर्णा कौशिक
अध्यापिका- गणित/विज्ञान
(रा.उ.मा.वि.गढ़ी दुवाटी,धौलपुर )
*भाई दूज*
दूज के चांद जैसा मेरा भाई
इंतजार के बाद खुशी जो आई
पांच बहनों में एक मेरा भाई
बहनों का नटखट और मां दुलारा ये भाई
जीवन की हर कठिन डगर पर साथ कही ना छूटे
जब तूने हमेशा हमारा साथ दिया
तो हम कैसे तुझसे रूठे।
सलामत रहो तुम
बहने रोली में यह दुआ ले आइ
खुशहाल हो हर पल तुम्हारा
करे दीर्घायु देवी माई।
नैनो में आशाएं लेकर
बहने रोली चंदन ले आई
झोली में दुआएं भर
भाई को गले लगाने आई
भाई बहन का प्यार अमर हैं
यह रिश्तों की एक सौगात
याद रहे पिता की यह बात।
तू हमेशा खुश रहे
यह तेरी बहन की दिल की आवाज
तुम परिवार के हो केंद्र
यह बात पिता के बाद समझ आईं
गर्वित हे वह परिवार जहां हो ऐसा भाई
जो खुद से पहले परिवार को रखे सदा ही
अब पूरी हो मनोकामनाएं
बहने आशीर्वाद देने आईं।
शुभकामनाएं और आशीर्वाद।
*भाई राकेश*
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
दिवाली🪔 दिवाली
आई दिवाली
भाए दिवाली
चेहरे पर मुस्कान ले आईं दिवाली
चम चम रोशनी से सजी दिवाली
मीठी मीठी खाए मिठाई
दिल में प्रेम रस भरने आई
दीए जलाएं, पटाखे जलाएं
नकारात्मकता को दूर भगाएं
उल्लास और खुशियों को बढ़ाएं
दुखों को हरने आई
खुशियों से झोली भरने आई
मेरी दिवाली सबकी दिवाली
आई दिवाली
चलो आज सब दिया जलाएं
अपनी आस्था, उम्मीदों और जस्बे को फिर महकाए
आंगन को जीवन के विभिन्न रंगों से सजाएं
जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनाए
इस दिवाली को यादगार बनाए
कर्म पथ पर डटे रहे
समझ रहे सहज रहे
परिवार का साथ बने रहे
अकेले मैं भी परिपूर्णता का आभास रहे
दिल में जो कोई बात रहे
बात करे विश्वास करे
प्यार मिले सम्मान मिले
दिवाली का आर्शीवाद मिले।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
दशहरा
चलो मनाएं सब दशहरा
जो मन में था कभी ठाना
करे जतन पूरा करने का।
आलस त्यागे, स्फूर्ति भर
कर्म भूमि पर खुद समर्पित हो
फल मिलेगा मीठा मीठा
चाहे कितने भी संकटों ने तुम्हे हो तोड़ा
काली घटाओं ने तुमको हो घेरा
मन हो व्याकुल कितना भी गहरा
धैर्य का साथ तुमने न छोड़ा
इसी सकारात्मक ऊर्जा के साथ हम मनाए दशहरा
चलते रहे कर्म भूमि पर
सत्य मार्ग पर बढ़ते चले यूं
निडर, निर्भिक,अडिग बन
बढ़ते चले जो
होगी बुराई पर अच्छाई की विजय
दशहरा सीख दे जाएं यह सब जगह
थकना नही
झुकना नहीं
भटकना नही
साहस और संकल्प से इसको सजाएं
चलो इस महापर्व को मनाएं
दशहरा मनाएं।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
सैनिक की कहानी
आओ बच्चों तुम्हें सुनाए कहानी एक जवान की ,
सर्दी गर्मी वर्षा में भी रक्षा करें भारत महान की।
वंदे मातरम् !वंदे मातरम्।
जम्मू में पुलवामा देखो यही ट्रक उड़ाया था ,
मत पूछो किस गद्दारों ने अपना देश जलाया था,
14 फरवरी का दिन वह मुल्क के लिए काला था,
फिर भी जय हिंद जय भारत हर बच्चा-बच्चा बोला था,
यहां लगा दी वीरों ने बाजी अपनी जान की,
सर्दी गर्मी वर्षा में भी रक्षा करें भारत महान की।
वंदे मातरम्! वंदे मातरम्।
भारत मां का लाल वह खड़ा सीमा पर पहरेदार है ,
रहे मुल्क आबाद हमारा करता नित्य त्याग हजार है,
यादें उसे घर की ना हिला सकी देश की रक्षा जीवन का आधार है,
दुश्मन को हुंकार देता, जिसको मौत का इंतजार है ,
राइफल ले,मस्तक उठा ड्यूटी निभाते मातृभूमि की शान की,
सर्दी गर्मी वर्षा में भी रक्षा करता भारत महान की।
वंदे मातरम !वंदे मातरम।
स्वरचित
मोनिशा शर्मा
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय तूमड़ा, छीपाबड़ौद , बारां
मोबाइल 9950696795
उपरोक्त कविता मेरे द्वारा स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित है।
विज्ञान - जीवन का आधार
विज्ञान जीवन को आसान बनाता,
इसके बिना मानव क्या कर पाता।
बल्ब को खोजा एडिशन ने,
टेलीफोन बनाया ग्राहम बेल ने,
विज्ञान ही उत्सुकता को बढ़ाता,
हमारे जीवन को सरल बनाता।
विज्ञान ही करता नए-नए आविष्कार,
उनसे ही होता जीवो का उपचार।
विज्ञान ही चांद पर चंद्रयान की सैर कराता,
नई-नई खोज से भारत का नाम बढ़ाता।
सोचो विज्ञान ने होता तो मानव क्या कर पाता।
एलियाश ने दी लिबास सीने की मशीन,
गैलीलियो ने बताई तारों की दुनिया रंगीन।
अम्ल क्षार की दुनिया का कैसे ज्ञान हो पाता,
यदि लिटमस पत्र को विज्ञान न बनाता।
इसलिए विज्ञान जीवन को आसान बनाता,
इसके बिना मानव क्या कर पाता।
स्वरचित
मोनिशा शर्मा
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय तूमड़ा, छीपाबड़ौद , बारां
मोबाइल 9950696795
उपरोक्त कविता मेरे द्वारा स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित है।
बापू
जिनके जन्म से खिल उठा भारत मां का यह आंचल
सत्य अहिंसा रूपी हथियार से वार कर
दिया स्वतंत्र भारत को जन्म
साधारण जीवन और उच्च विचार
तभी तो थे हमारे बापू महान
सत्य और अहिंसा के थे वह पुजारी
कभी ना उन्होंने हिम्मत हारी
अकेले थे वह सब पर भारी
तभी तो हमें मिली आजादी
जाति धर्म का भेद भूल
सबको गले लगाया था
तभी तो वह महात्मा कहलाया था
अस्पृश्यता का हो अंत
इंसान बने मानवता से सर्व संपन्न
गांधी जयंती उत्सव बनाएं जन-जन
बापू का था एक सपना
स्वच्छ साक्षर हो भारत अपना
स्वच्छता में हाथ बटाएंगे
निरक्षरता को मिटाएंगे
संघर्ष से सफलता की यात्रा हो
हिम्मत रहे हमेशा, न कोई बांधा हो
सत्य और अहिंसा से वास्ता हो
जीवन चाहे साधा हो
पर विचारो में महानता हो
गांधीवाद से परिपूर्ण हमारा जीवन
सपनो को वास्तविकता मे बदलने की शक्ति बन
हम गांधीजी को करे नमन नमन नमन
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
बाँगड़ में
उछाह अणहूतो तन मन में,
जोश भरियो है जन मन में!
पाली री पावन धरती पर,
राज्य खेल है बांगड़ में!!
बालक आवै ठौड़-ठौड़ ऊँ,
कोशिश करे वे जी-तोड़ ऊँ!
ज़ोर लगावेला जीतण में,
राज्य खेल है बाँगड़ में!!
बाँगड़ छायी बसंत बहार,
भेळा हुया जठे लोग हजार!
खेल शुभारंभ इण आँगण में,
राज्य खेल है बाँगड़ में!!
जिला प्रशासन जतन करे,
व्यवस्था माथै मंथन करे!
कोड करे पाली प्रांगण में,
राज्य खेल है बाँगड़ में!!
जेडी, डीईओ साहब म्हाँरा,
पीटीआई और गुरुजन सारा!
लाग्या व्यवस्था बणावण में
राज्य खेल है बांगड़ में!!
खेल निराळो बास्केटबॉल,
जीतणियाँ रा बाजे ढोल!
जीत मिलेला राँगड़ ने,
राज्य खेल है बाँगड़ में!!
सत्यनारायण सृजन करे.
जनता माँय जोश भरे!
युवा शक्ति ने जगावण ने,
राज्य खेल है बाँगड़ में!!
कवि:- सत्यनारायण राजपुरोहित पुनाड़िया
व्याख्याता हिंदी
पीएमश्री श्री बांगड़ राउमावि पाली
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विज्ञान - जीवन का आधार
विज्ञान जीवन को आसान बनाता,
इसके बिना मानव क्या कर पाता।
बल्ब को खोजा एडिशन ने,
टेलीफोन बनाया ग्राहम बेल ने,
विज्ञान ही उत्सुकता को बढ़ाता,
हमारे जीवन को सरल बनाता।
विज्ञान ही करता नए-नए आविष्कार,
उनसे ही होता जीवो का उपचार।
विज्ञान ही चांद पर चंद्रयान की सैर कराता,
नई-नई खोज से भारत का नाम बढ़ाता।
सोचो विज्ञान ने होता तो मानव क्या कर पाता।
एलियाश ने दी लिबास सीने की मशीन,
गैलीलियो ने बताई तारों की दुनिया रंगीन।
अम्ल क्षार की दुनिया का कैसे ज्ञान हो पाता,
यदि लिटमस पत्र को विज्ञान न बनाता।
इसलिए विज्ञान जीवन को आसान बनाता,
इसके बिना मानव क्या कर पाता।
स्वरचित
मोनिशा शर्मा
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय तूमड़ा, छीपाबड़ौद , बारां
बचपन के रंग
बचपन के रंग, एक कलेक्शन है यादों का,
खिलौनों की दुनिया में खुशियों का संगम है,
लाल, पीले, हरे, नीले, रंगों का मेला है,
बचपन की यादें, जो दिल को ताज़ा रखती हैं!
चॉकलेट और आइस्क्रीम, मिठास का एक्सपीरियंस है,
मम्मी की कहानियाँ, जो दिल को टच करती हैं,
पापा की गोद में, सुकून की एक अलग ही फीलिंग है,
बचपन के रंग, जो जीवन को कलरफुल बनाते हैं!
बचपन की शरारतें, एक अलग ही मज़ा है,
दोस्तों के साथ खेलना, एक अनोखा एक्सपीरियंस है,
बचपन की यादें, जो अक्सर याद आती हैं,
बचपन के रंग, जो जीवन को रंगीन बनाते हैं!
बचपन के रंग, एक अनमोल खज़ाना है,
जो दिल में बसे रहते हैं, और जीवन को सुंदर बनाते हैं,
यादें जो देती हैं, बचपन की साथ हैं,
बचपन के रंग, जो जीवन को रंगीन और खूबसूरत बनाते हैं!
📝अंश शर्मा
रा. उ. प्रा. वि. खुरी खुर्द (दौसा)
"मुक्त गगन के पंछी"
मुक्त गगन के पंछी हैं,
स्वछंद गगन में उड़ते हैं,
अपनी मर्जी के मालिक हैं,
जग जग विचरण करते हैं।
पूरब से पश्चिम को जाते हैं,
उत्तर से दक्षिण को आते हैं,
सम्पूर्ण धरा को नापते हैं,
मुक्त गगन के पंछी हैं।
देख कर के जग को सारा,
अपना घर है पिंजरों से प्यारा,
मत छीनो हम से आजादी को,
परतंत्रता हम को नहीं भाती है।
पेड़ों पर रह लेते सुकून से,
सुख की नींद है सोते हैं सुकून से,
सुबह सवेरे काम को जाते हैं,
थक कर घर को लौट आते हैं।
मुक्त गगन के पंछी हैं,
स्वछंद गगन में उड़ते हैं,
अपनी मर्जी के मालिक हैं,
जग जग विचरण करते हैं।
📝 " अंश शर्मा "
शिक्षक दिवस
किताबो की सीढ़िया पार कर
पहुंची इस पद पर
बनी मैं शिक्षक
किताबी ज्ञान से सुशोभित हुए इस पद पर
स्कूल के प्रांगण में व्यावहारिक जीवन से
रूबरू हुए हम सब टीचर्स
ज्ञान का अथाह भंडार बाटे भर भरकर
रचे कैरेक्टर्स अपने बल पर
कवि लेखक अध्यापक से बडकर
हम एक अच्छे इंसान बने
बच्चो के पथप्रदर्शक
स्कूल और घर की जिम्मेदारियों
में बनाकर संतुलन
अपने प्रयत्नों की डोर पे चले हम हर पल
खुशहाल बने हमारा आनेवाला कल
गुरु बन हम कुछ सीख दे जाए
गुरु बन हम ज्ञान और खुशियों के दीप जलाएं
गुरु बन अंधकार को दूर कर ज्ञान और आस्था, उम्मीद की रोशनी फैलाए
प्यार सम्मान ऐश्वर्य कमाए
प्रेरणा कर्मठता विश्वास की अलख जगाए
पाठक, कवि, लेखक, गायक, लोक कलाकार
अपने अलग अलग प्रतिभाओं से
विद्यार्थी को उनके कौशल से परिचित करवाए
उन्हें जीवन को जीने की राह दिखाए
नमन नमन नमन गुरुदेवा
मंगल मंगल मंगल जहां तेरा डेरा
ज्ञान, सम्मान, पहचान, समृद्धि और सेवा
कृपा और आशिर्वाद हम पर बना रहे यह तेरा
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं और सेवा।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
"राष्ट्रपिता महात्मा गांधी"
आओ बच्चो तुम्हें सुनाएं
एक संत की कुछ गाथाएं
जिसने पैदल घूम घूम कर
कर दी पार सभी बाधाएं
नाम था उनका मोहनदास
साबरमती में करते बास
प्यार से उनको बापू कहते
सबको आते थे वो रास
सबके दुख सुख के थे साथी
राष्ट्रपिता की मिली उपाधि
कोई उन्हें महात्मा कहता
कोई कहता था उन्हें गांधी
बदन इकहरा मध्यम काठी
हाथ में रखते थे एक लाठी
स्वच्छता अभियान में धोया
मन का मैल और तन की माटी
तन पर एक लंगोटी पहने
सत्य अहिंसा उनके गहने
भारत में उनके आते ही
दुष्ट लगे थे डर कर रहने
उनको सिर्फ स्वदेशी भाये
भारत से अंग्रेज भगाए
चरखा स्वयं चला चलाकर
भारत में वे खादी लाए
करो या मरो था उनका नारा
देश था उनको सबसे प्यारा
भारत माता की सेवा में
न्योछावर किया जीवन सारा
उनके जीवन से लो ज्ञान
कर्मों से तुम बनो महान
हाथ जोड़कर शीश झुकाकर
तुम सब उनको करो प्रमाण
(By लोकेश कुमार अग्रावत
व्याख्याता - अंग्रेजी
म. गा. रा. वि. नौनेरा, कामां
जिला - डीग)
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शीर्षक: "दिल की दास्तान"
ओ कान्हा, तेरी याद में खो जाता है दिल,
तेरी मुस्कान के बिना, खालीपन महसूस करता है।
तेरी बांसुरी की धुन, मेरे दिल को गुदगुदाती है,
तेरी याद में मेरा दिल, भीग जाता है खुशियों में।
तेरी नटखट हरकतें, मेरे दिल को खुश करती हैं,
तेरी शरारतें, मेरे दिल को गहराई से छू जाती हैं।
तेरी आँखों में, मेरा दिल खो जाता है सम्मोहित होकर ,
तेरी मुस्कान, मेरे दिल को जीत लेती है आकर्षित होकर।
ओ कान्हा, तेरी याद में धड़कता है दिल,
तेरी मधुरता मेरे दिल को रोमांचित करती है बार-बार,
तेरी मधुरता मेरे दिल को मोहित करती है पूरी तरह से,
ओ कान्हा, तेरी याद में खुश रहता है दिल।
📝 अंश शर्मा 💐
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हैपी थदड़ी (सिंधी त्यौहार)
आयो-आयो, आयो भा मुंजो, मुंजे घर आयो आ
हे थदड़ी जो ढि्ण' खड़ी आयो आ
हलो मिली त सब खाऊं मीठी-मीठी लोली
खाऊं तीखी-तीखी कोकी
वांगड करेला ए भिंडी
मां खर्ची भी चंगी मोकलाई आ
अज छुट्टी आ शॉपिंग करे, नया वेस पायु ता
सब थदड़ी जो त्यौहार मनायू ता
पेर्रीयू शीतला माता खे भोग लगायुता
ठार माता ठार पहिंजे बच्चणन खे ठार
माता अगे भी ठारियो तई हाणे भी ठार
मम्मी अज बचपन जी याद ढाडी आई आ
कढी वढा थियासे खबर न पई आ
हीन थदड़ी असांखे बचपन लौटायो आ
नच्चो नच्चों सभई नच्चो
असा खुशी-खुशी थदड़ी मनायुता
प्रणाम मुंजी सस खे
प्रणाम सबीन वडन खे
तांजो आशिर्वाद मुखे फल्यो फल्यो आ
अज असा थदड़ी जा गीत भी गाईनदास
अज कोई कम न आहे
अज सभई थदो खाइन
माता क्रोध ए आग सा बचाए
थदो मीठो थदो सूठो
उत्साह उमंग खुशी सा मनायु
सभिन खे थदड़ी ज्यु वादायूं
भोग लगायूं, परसाद खाऊं
बार-बच्चा-जवान-वड़ा
माता जो आशीर्वाद पायू
अज थदड़ी आ,थदड़ी आ, थदड़ी
हर्षोल्लास सा मनाइंदास असां थदड़ी!
(चंदवानी, रामचंदानी परिवार)
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प्रेमा भक्ति
माखन चोर नंद गोपाल
मेरे हो तुम जीवन के आधार
प्रेम यह हैं निस्वार्थ
मैं नहीं होंगी सती
मेरे तो बस गिरधर गोपाल
मेरे मन में बस
तुमारा वास
तुमारा मेरा रिश्ता
यह खास
देवकी मां की तुम संतान
यशोदा मां पालनहार
दो माओ का प्यार और आशिर्वाद
जग का तुम पर विश्वास
तुम हो सबके नंद गोपाल
मैं हो गई मस्तानी, तेरी दीवानी
बांसुरी की गूंज पर, नाचू मैं मोरनी बन, तुझपे वारी
विष का प्याला पी गई, दर्शन होत तुमार
मर गई मैं, मिट गई मैं, तेरी हो गई ये कहानी
मीरा हैं तेरी दीवानी
प्रेम का यह, गजब हैं पाठ
सीखो मीरा दे यह ज्ञान
प्रेम में न स्वार्थ न अंजाम
इस प्रीत में निष्ठा और समर्पण का जाम
इस प्रेम भक्ति को शत शत प्रणाम ।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
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काश! मैं जिंदा होती
खूब लड़ी मर्दानी
मैं भी झांसी जैसी रानी थी
मैने भी सपने देखे
उनको पूरा करने की ठानी थी
पंखों को फैलाकर
मेरी उड़ान भरने की भारी थी
प्रफुल्लित था मन
परिवार का नाम रोशन करने की मेने ठानी थी
कर्मठ, अनुशासित, बौद्धिक व्यक्तित्व मैं
स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने वाली थी
कुछ दिन और बचे थे ट्रेनिंग के
फिर अपनी कलम से लिखनी
अपनी कहानी थी
पता न था
इस तूफान और अंधकार में
मैं खो जाऊंगी
और रह जायेगी मेरी अधूरी कहानी भी
मैं लड़की थी
मैं बेटी थी
क्या यही मेरी गुनाही थी
दूसरो की जान बचाने वाली मैं,
दरिंदो के हाथों, खुद की ही जान गवां बैठी
पूरी शक्ति से संघर्ष करती रही मैं
दर्द को सहती गई मैं
दुख को पीती रही मैं
कांटो की चुबन से भी हारी नही मैं
जितनी जान बाकी थी लड़ती रही मैं
तिल तिल मरती रही मैं
जिन्दी लाश बनाकर छोड़ा मुझे
बलात्कारियों ने नोच-नोच कर तोड़ा मुझे
जीने की आस थी
वो आखरी सांस
उसने भी बीच मझदार में छोड़ा मुझे।
हैं ! औरत, बेटी और मां
कोई भी रूप हो तेरा
रुकना नही, झुकना नहीं
तू हैं सृष्टि की अनोखी रचना
तू सर्वश्रेष्ठ हैं तू पूरा करना अपना सपना।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
15 अगस्त
दिल में हो जो जस्बात
क्या कर न गुजरे इंसान
यह हमारा हिंदुस्तान
कर्मठता व्यावहारिकता और देश भक्ति
यह हमारी पहचान
तिरंगा हमारी है शान
ईर्ष्या द्वेष से दूर हैं ये इंसान
हां, मेरा भारत देश महान
उन माताओं को नमन
जिन्होंने ऐसे वीरों को दिया जनम
हम भी करेंगे आज ये वादा
करेंगे परिवार और देश का नाम रोशन इसी जनम
मिलकर देंगे देश के लिए योगदान
बनेंगे एकता की मिसाल
पहचानो अपनी अंतर्निहित शक्ति को
बनो तुम एक सपूत महान
रचो इतिहास खुद अपनी कलम से
बनो महान तुम अपने करम से
सुनो उसको जो हैं जेहन में
न करो खुशियों का इंतजार
हर वक्त बांटो प्यार और सम्मान
खुशियां छोड़े न तुमारा साथ
छोटी सी ये जिदंगी
भर दो इसमें खुशियों के भिन्न भिन्न रंग
न कोई रहे अकेला यहां
एक दूसरे का साथ मिले ऐसे हो पल
मंगलकामनाएं सभी की
आजादी के जो संजोए थे ये पल
मिली है, हमे उपहार में
धन्यवाद करे हमारा मन
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
सबकी पूरी हो मनोकामनाएं ।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
रक्षा बंधन
ये बंधन हैं
अपनत्व, प्यार, सम्मान एवम सुरक्षा का
कच्चे धागे में मिले सौगात जहां
बहनों की दुआएं और आशीर्वाद की डोर बांधे
भाई दे झोली भर उपहार और स्नेह यहां
निस्वार्थ यह रिश्ता और जनम जनम का साथ जहां
भाई और बहन का यह अटूट बंधन और मान यह हमारा रक्षा बंधन का त्यौहार
ये कैसा अनमोल सा हैं रिश्ता बता
दूर होकर सदा दिल के पास रहा
रोए या हंसे हमेशा साथ रहा
भाई हमारे दिल का केंद्र
तभी हम सब मजबूत खड़े अपनी जगह
खुद को शक्ति का स्त्रोत बना, दी रोशनी सब जगह
दूधो नहाओ पूतो फलों
ये हमारा आशीर्वाद सदा
भाई बहन का यह त्यौहार
मिठाई व्यंजन और उपहार
ये हैं रक्षा बंधन का त्यौहार
- Teacher
डॉ. सुनीता रामचंदानी
🧿🧿🧿🧿
जिंदगी
कशमकश सी है जिंदगी
कहते हैं प्रोफेशनल और पर्सनल है अलग-अलग
पर हमारी जिंदगी तो हैं एक ही
जिंदगी की नाव में हम चल दिए हैं
तो तूफानों से क्या डरे
हवा का रुख ले जाए कभी इस पार तो कभी उस पार
जब मौसम ही एक जैसा कभी रहा नही
ये तो ये वक्त कहां ठहरेगा
निकल जायेगा पतली गली
कभी भागती सी कभी ठहर सी जाती ये जिंदगी
कभी रूठिं तो कभी मना सी जाती ये जिंदगी
आती जाती बहुत कुछ सीखा जाती ये छोटी सी जिन्दगी
कभी लगे थक से गए
कभी लगे अभी तो बहुत आगे जाना
कैसे कैसे रंगो में उलझाए ये जिंदगी
जीना सिखाये
लड़ना सिखाए
अपने अस्तित्व का आइना दिखाए
कभी पूछूं में खुद से
मैं कौन हूं?
प्रत्यक्ष दर्शन करा दे ये जिंदगी
तू हैं अजब
तू हैं गजब
तू हैं स्वाभिमान
तू हैं आस
तू हैं सांस
तू हैं जिंदगी
- Teacher
डॉ. सुनीता रामचंदानी
🧿🧿🧿🧿
बचपन
वो क्या फसाना था
कितना प्यारा जमाना था
मां का सिरहाना था
पिता का समझाना था
भाई बहनों का सताना था
वो बीमारी का बहाना था
दोस्तो का याराना था
वही हमारे बचपन का खजाना था
बेटी की अटखेलिया देख
मेरा जमाना लौट आया
वो बचपन याद आया
जब पेपर प्लेन बनाया
और अपने पंखों को फैलाया
रिमझिम बारिश में
नंगे पैरों से छप छपाया
पानी में कागज़ की कश्ती को तैराया
वो बचपन बहुत याद आया
लुका छिपी के खेल में
खुशियों को तलाशा
बेटी की खिलखिलाहट में
अपना बचपन समाया
जी लेने दो मुझे ये बचपन के रंग
पी लेने दो ये मदहोशी के पल
थम जाए ये सुकून के क्षण
लौट आए मेरे बचपन के फन
मिल जाए वो मां की गोद
सो जाऊ में तसल्ली से रोज
लोट आए पिता जो हमेशा के लिए चले गए
बीच मझधार में ही छोड़
लगा दू गले न जाने दू कही और।
जब मन अकेला हो
तो हो जाए भाई बहनों से कॉल
दर्द की दवा हैं कुछ रिश्तों के मोल
समय का रिवाइंड बटन दबाकर
जी भर के जीलू बचपन एक बार और
कब बड़े हो गए समय हो गया चोर
काश लोट आए बचपन एक बार मेरा और
लौटा दो मेरी बचपन की कहानी
मेरी जुबानी
स्वछंद, नटखट, चंचल मन
देखे पीछे अपने बचपन के पल।
(डॉ सुनीता रामचंदानी)
🧿🧿🧿🧿
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